बुधवार, 21 जून 2017

आत्मा के अस्तित्व को नकारना स्वयं अपने 'होने' अपने 'रीअल -सेल्फ' सच्चिआनंद स्वरूप को नकारना है। जैसे स्वर्ण और स्वर्णाभूषणों में कोई फर्क नहीं है दोनों स्वर्ण ही हैं ऐसे ही आत्मा स्वर्ण का एक कण है परमात्मा स्वर्ण है। परमात्मा सूर्य है तो आत्मा उसकी एक किरण है।

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क्या आत्मा महज़ एक विचार है .आत्मा का कोई अस्तित्व नहीं है ?शरीर के साथ सब कुछ चुक जाता है ?पुनर -जन्म की अवधारणा भ्रामक है ?
आज एक ब्लॉग पोस्ट पढ़ी उसका लब्बोलुआब यही था कि आत्मा एक विचार मात्र है और शरीर के क्षीण होने पर अंतिम संस्कार के वक्त हवा ,पानी ,अग्नि ,आकाश और पृथ्वी तत्व वायुमंडल में ही खो जाते हैं जिनसे पुनर्जन्म बोले तो नै काया का निर्माण हो ही नहीं सकता .
मन में इस ब्लॉग पोस्ट को पढ़ने पर यह सवाल कौंधा ,फिर आत्मा ,परमात्मा ,पापात्मा ,दुरात्मा ,हुतात्मा ,प्रेतात्मा ,महात्मा ,महान आत्मा ,दुष्टात्मा शब्द कहाँ से आये और इनका अर्थ क्या है ?
'मेरी तो उसे देख रूह फना हो गई' ऐसे जुमले वाक्य और शब्द प्रयोग भी भाषिक जगत से बे -दखल करने पड़ेंगे .रूह रूहान शब्द भी भाषा कोष से बाहर करना पड़ेगा .परमात्मा से आत्मा का रूह रूहान बोले तो बातचीत निलंबित रखनी पड़ेगी .
फिर यह जुमला क्यों चल निकला फलाने ने (अमुक ने )कल रात शरीर छोड़ दिया ?परमात्मा उसकी आत्मा को शान्ति दे .दो मिनिट का मौन रखके हम किसे श्रद्धांजलि देते हैं फिर .अकाल मृत्यु (आकस्मिक दुर्घटना मृत्यु )होने पर आत्मा की शांति के लिए विशेष स्थानों पर क्यों जाते हैं .महामृत्युंजय मन्त्र का जाप क्यों करते हैं .
तेरह दिन तक दीया (दीपक )क्यों जलाया जाता है उस स्थान पर जहां किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है (आत्मा शरीर छोडती है ).फिर साल भर बाद सनातन धर्मी गंगा ,यमुना या किसी भी नदी के तट पे जाके दीपक क्यों सिलाते हैं ?यही न की परलोक में भी वह आत्म तत्व आलोकित रहे जो स्वयं ज्योतिबिंदु स्वरूप है .दीपक की लौ सा पवित्र है .
क्या यह सब कल्पना मान लिया जाए .शरीर के साथ क्या सब कुछ खत्म हो जाता है .या फिर मुसाफिर (आत्मा )का सफर ज़ारी रहता है .एक से दूसरे चोले में ?८ ४ लाख जन्मों तक और फिर सब कुछ की पुनरावृत्ति होती है .आवाजाही ज़ारी रहती है आत्मा की एक से दूसरे शरीर में .
क्यों कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश देते हुए कहा -हे अर्जुन आत्मा अजर अमर अविनाशी है .पञ्च भूतों से परे निराकार परम ज्योति तत्व है .शश्त्र जिसे काट नहीं सकते ,अग्नि जिसे जला नहीं सकती .तू अपने बंधू बांधवों का मोह छोड़ नष्टो मोहा बन कर्म कर .फल की चिंता मत कर .निष्काम कर्म ही गीता का सार है .जो हुआ अच्छा हुआ ,जो हो रहा है वह भी अच्छा हो रहा है जो होगा वह भी अच्छा होगा .फल की चिंता मत कर .
क्यों शरीर को आत्मा का वस्त्र कहा जाता है .क्यों कहा जाता है मनुष्य आत्मा अधिकतम ८ ४लाख और न्यूनतम एक मर्तबा जन्म लेती है .वस्त्र बदलती है .बंधू बांधव सखा बदलती है .जाति धर्म देश बदलती है .दैहिक सम्बन्ध बदलती है .
क्यों कहा जाता है आत्मा अ-लैंगिक होती है शरीर स्त्री और पुरुष होता है आत्मा नहीं .रूह सबकी पञ्च तत्वों से परे अपने बुनियादी स्वरूप में यकसां हैं .न स्त्री है न पुरुष .
शरीर को रथ, आत्मा को रथी ,बुद्धि को सारथी क्यों कहा गया फिर ?
रथी जब रथ (शरीर )छोड़ जाता है ,शेष को अर्थी क्यों कहते हैं .श्राद्ध पक्ष और पिंड दान का क्या मतलब है फिर ?पिंड कहा जाता है रहने की जगह को . आत्मा का अस्थाई गाँव उसका शरीर(पिंड ) ही है ?स्थाई है परमधाम जहां दिव्यप्रकाश है शान्ति है .
और आत्मा का स्थाई निवास ब्रह्मलोक (परलोक ),पार गगन ,परे से भी परे परम धाम है .
आत्मा का पारलौकिक पिता परम -आत्मा (निराकार शिव ,ज्योतिर्लिन्गम )है .लौकिक पिता शरीर का पिता है .दैहिक सम्बन्ध में शरीर आता है .इस देह में लौकिक मात पिता के जीवन खंड (जींस )होते हैं .अ-लौकिक शरीर बोले तो आत्मा का पिता पार -लौकिक परमात्मा है .रूह के जींस नहीं होते कर्म की छाप लिए रहती है रूह .आपका क्या कहना है अपनी राय दें .
यह भी बतला दें -मनोविज्ञान की पहली परिभाषा -मनोविज्ञान आत्माओं का विज्ञान है दी गई है .विरोधाभास देखिये आज वही मनोविज्ञानी आत्मा का नाम लेने पर नाक भौं सिकोड़ते हुए उसके अस्तित्व को नकारते हुए कहतें हैं आत्मा यदि है तो लाओ उसे लैब में .
पूछा जा सकता है आत्मा क्या गिनी पिग है या लेबोरेट्री एनिमल है ?
कुछ कहते हैं आत्मा का यदि अस्तित्व है तो वह दिखाई क्यों नहीं देता ?
बतलादें आत्मा पंचभूतों की निर्मिति नहीं है जो नेत्र उसे देख सकें। दिखलाई तो दूध में मख्खन लकड़ी में अग्नि जल में तरंग भी नहीं देती लेकिन इनकी व्याप्ति रहती है दूध लकड़ी तथा जल में। जो चीज़ दिखलाई नहीं देती क्या उसका अस्तित्व नहीं होता।
सन्दर्भ- सामिग्री :
जन्म ,मृत्यु और मोक्ष !
जन्म और मृत्यु ,यही है दो अटल सत्य।जन्म होगा तो मृत्यु निश्चित है। जन्म और मृत्यु के बीच के समय को जीवन की संज्ञा दी गई है। इस प्रकार जन्म ,जीवन और मृत्यु ,यही है कहानी हर जीव की।परन्तु जन्म के पहले की अवस्था ,स्थिति काया है , मृत्यु के बाद की स्थिति क्या है ? कहाँ जाते हैं ? यह किसी को पता नहीं है।जन्म के पहले क्या ? मृत्यु के बाद क्या ? यही है शाश्वत प्रश्न।
शास्त्रों में 'आत्मा' 'की बात कही गई है। कहते हैं आत्मा नश्वर शरीर को छोड़कर अलग हो जाती है और परमात्मा में विलीन हो जाती है जिसे 'मोक्ष' कहते हैं। अतृप्त आत्मा फिर जन्म लेती है अर्थात कोई नया शरीर धारण करती है और यह सिलसिला तब तक चलता रहता है जबतक उसे 'मोक्ष' नहीं मिल जाता है।आत्मा का नया शरीर धारण करने को 'पुनर्जन्म ' कहा जाता है।अब प्रश्न उठता है ,
"आत्मा क्या है? शरीर क्या है ?"
शरीर में आत्मा है तो वह जीवित है। शरीर आत्माहीन है तो वह मृत है,शव है। इसका अर्थ है, आत्मा और शरीर का युग्म ही जीव है।शरीर पञ्च तत्व से बना है।शरीर के नष्ट होने पर वे तत्व पांच अलग अलग तत्वों में मिल जाते हैं, अर्थात पूरा शरीर का रूप परिवर्तन हो जाता है। यहाँ विज्ञान का सिद्धान्त लागू होता है कि ,"किसी पदार्थ को नष्ट नहीं किया जा सकता है केवल उसका रूप परिवर्तन किया जा सकता है। The matter cannot be destroyed but it can be transformed into another form." इसीलिए मरने के बाद शव को जलाना या कब्र में रखना, रूप परिवर्तन की प्रक्रिया है। इसके बाद के जो क्रिया कर्म ,रस्म रिवाज़ हैं उस से न आत्मा का, न शरीर का कोई सम्बन्ध है और न उनको कोई लाभ या हानी होती है। ये क्रियाएं शरीर और आत्मा के लिए अर्थहीन हैं और अंधविश्वास से प्रेरित हैं।
आत्मा और शरीर का युग्म ही जीव है इसीलिए आत्मा और शरीर का घनिष्ट सम्बन्ध है। शरीर स्थूल है ,दृश्य है।आत्मा सूक्ष्म ,तीक्ष्ण ,तीब्र और अदृश्य है।शरीर पाँच तत्वों से बना है। वे तत्व हैं अग्नि ,वायु ,जल ,मृत्तिका और आकाश।ये सब मिलकर शरीर बनाते हैं और इनकी प्राप्ति माँ से होती है।माँ के गर्भ में जब शरीर बनकर तैयार हो जाता है उसमें कम्पन उत्पन्न होता है जिसे आत्मा का शरीर में प्रवेश का नाम दिया गया है अर्थात आत्मा ने एक नया शरीर धारण कर लिया है।
लेकिन इसे यदि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो यह कम्पन पैदा कैसे होता है?
पाँच तत्वों में अग्नि उष्मा(Heat Energy) का स्वरुप है।हीट एनर्जी परिवर्तित होकर (Electrical Energy )इलेक्ट्रिकल एनर्जी बन जाता है। यह शरीर के हर सेल (Bio Cell) को विद्युत् सेल बना देता है। यह स्वनिर्मित विद्युत् है। सब सेलों का समुह शरीर का पॉवर हाउस बन जाता है।पुरे शरीर में विद्युत् प्रवाहित होने लगता है।हमारे शरीर में जो रिफ्लेक्स एक्शन होता है वह इसी विद्युत् प्रवाह के कारण होता है।हमारे ब्रेन तेजी से काम करता है वह भी विद्युतप्रवाह के कारण कर पाता है।पैर में चींटी काटता है तो हमें दर्द महसूस होता है ,यह रिफ्लेक्स एक्शन के कारण होता है और रिफ्लेक्स एक्शन विद्युत प्रवाह के कारण होता है।जिस सेल में विद्युत् प्रवाह नहीं होता है उसमें चैतन्यता नहीं रहती (स्नायु हीन होता है ).इसीलिए उस सेल में होने वाले दर्द हमें पता नहीं लगता। यही विद्युत् जबतक शरीर में रहता है ,शरीर चैतन्य की हालत में रहता है।
अग्नि उष्मा के रूप में वायु की गति को नियंत्रित करती है।यही वायु और विद्युत् मिलकर अपनी अपनी प्रवाह से ह्रदय ,फेफड़े तथा अन्य महत्वपूर्ण अंगो में कम्पन उत्पन्न करता है और यही कम्पन जीवन की निशनी है।जल और मृत्तिका शरीर को स्थूल रूप देने के साथ साथ विद्युत् और वायुके गति निर्धारण में निर्णायक भुमिका निभाते हैं। दो सेल के बीच में कुछ स्थान खाली रहता है ,यह सेल के चलन में सहायक है।उसी प्रकार शरीर के अन्दर दो अंगो के बीच में खाली स्थान रहता है।सेल और अंगो के बीच में खालीस्थान को आकाश (शून्य ) कहते हैं।अगर खाली स्थान नहीं होगा तो वांछित कम्पन उत्पन नहीं होगा। मन की शुन्यता भी आकाश है।इस प्रकार पञ्च तत्त्व शरीर में कम्पन उत्पन्न करने में (प्राण प्रतिष्ठा ) महत्वपूर्ण कार्य करते हैं।शरीर में अग्नि का कमजोर होने पर या अत्यधिक बढ़ जाने पर वायु की गति में भी तदनुसार परिवर्तन होता है। विद्युत् संचार में भी परिवर्तन होता है।इसीलिए शरीर का तापक्रम पर नियंत्रण रखना बहुत जरुरी है।वृद्धावस्था में या बिमारी की अवस्था में शरीर में उष्मा की कमी हो जाता है। विद्युत् संचार कम हो जाता हैऔर धीरे धीरे ऐसी अवस्था में आ जाता है जब सेल आवश्यक विद्युत् उत्पन्न नहीं कर पाता है। ऊष्मा की कमी के कारण हवा की गति रुक जाती है।यही मृत्यु की अवस्था है। शरीर में बचा विद्युत् (Residual) निकलकर अंतरिक्ष के तरंगों में मिलजाता है। शरीर के पाँच तत्त्व अलग अलग होकर पञ्च तत्त्व में विलीन हो जाता है। इस अवस्था में किसी आत्मा की कल्पना करना या उसकी मोक्ष की कल्पना करना ,वास्तव में कल्पना ही लगता है।
रही बात पुनर्जन्म की तो शरीर जिन अणु परमाणु से बना था ,दूसरा शरीर वही अणु ,वही परमाणु से नहीं बनता ,इसीलिए शरीर का पुनर्जन्म संभव नहीं है। नया शरीर में पञ्च तत्व के नए अणु ,परमाणु होंगे। अत: उनमे नया कम्पन होगा।विद्युत् पॉवर हाउस भी नया होगा। यहाँ कम्पन का पुनर्जन्म या विद्युत् का पुनर्जन्म कहना सही नहीं लगता। कम्पन आत्मा नहीं ,विद्युत् भी आत्मा नहीं। अत: 'आत्मा' एक वैचारिक तत्त्व है और वैचारिक तत्त्व न नष्ट होता है, न उसका पुनर्जन्म
होता है।
नोट : विद्वान पाठकों से निवेदन है कि वे विषय पर केवल अपनी सोच/विचार व्यक्त करे।किसी के कमेंट्स के ऊपर कमेंट्स कर वाद विवाद ना करें। इस लेख का उद्देश्य है विभिन्न विचार धारायों से खुद को और पाठकों को परिचय कराना।
कालीपद "प्रसाद "
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प्रस्तुतकर्ता कालीपद प्रसाद पर शनिवार, जून 08, 2013
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लेबल: जन्म, मृत्यु और मोक्ष !
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Virendra Sharma आत्मा के अस्तित्व को नकारना स्वयं अपने 'होने' अपने 'रीअल -सेल्फ' सच्चिआनंद स्वरूप को नकारना है। जैसे स्वर्ण और स्वर्णाभूषणों में कोई फर्क नहीं है दोनों स्वर्ण ही हैं ऐसे ही आत्मा स्वर्ण का एक कण है परमात्मा स्वर्ण है। परमात्मा सूर्य है तो आत्मा उसकी एक किरण है। 

बुद्ध दर्शन में आत्मा के अस्तित्व को नहीं माना वजहें तात्कालिक समाज में व्याप्त कर्मकांड था ,योनी और लिंग पूजन था देह को कष्ट देना था , पशु हिंसा थी। 

पुनर्जन्म का ज़िक्र बाइबिल के ओल्ड टेस्टामेंट में है। कुरआन की आयतें भी कयामत के दिन की बात करती हैं वहां भी हाज़िरी रूह की होती है शरीर तो सुपुर्दे ख़ाक हो जाता है। चार्वाकीय दर्शन आत्मा के अस्तित्व को नकारता । आत्मा के अस्तित्व को नकारना मनमुखि होना है (मन -मुखी अर्थात अपने मन की ही मान ना ,गुरु के न मान ना। ).
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ReplyYesterday at 7:57am

1 टिप्पणी:

Anita ने कहा…

दो सेल के बीच के खाली स्थान को आप क्या कहेंगे..वही शून्य ही आत्मा है..जो होकर भी नहीं जैसा है वही तत्व परमात्मा है..