कविता :देशभक्ति के रंग
----- कमांडर निशांत शर्मा।
----- कमांडर निशांत शर्मा।
तुझको मेरे मुझको तेरे प्यार का आभास हो,इंसान की इंसान से इंसानियत की आस हो।
कौम- औ- धरम के अफ़साने बहाने भूलकर , राम का रौज़ा रखूँ मैं ईद का उपवास हो।
देशभक्ति के जुनूं का रंग न कोई जात हो ,हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई हैं न एहसास हो।
सेज चंदन की मिले या हो नसीब दो गज़ ज़मीं ,इस वतन पे हो न्योंछावर अंतिम मेरी सांस हो।
खो रहा चैन -औ -अमन मज़हब ही मानो मर्ज़ हो ,राम में हो कुछ रहीम गीता कुरआन -ए -ख़ास हो।
मंदिर मस्जिद गिरजे गुरद्वारे ही जैसे रूठें हों ,मंदिर में 'अल्लाह हु अकबर 'गिरजे में अरदास हो।
मुझसे मेरा नाम औ ईमान तुम न पूछिए ,उत्तर -दाख्खिन पूरब पश्चिम हम वतन सब काश हों।
हाथ सिर और नज़रें तिरछी जो उठे मैं काट दूँ ,लहराए तिरंगा रक्त में लथपथ जो मेरी लाश हो।
६२३ ,आफिसर्स रेजिडेंशियल एरिया ,इंडियन नेवल अकादमी ,एज़िमला (कन्नूर )
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )
1 टिप्पणी:
ओज़स्वी ... देश प्रेम के रंग में रंगी ..
राम राम जी .. कैसे हैं आप ... बहुत बहुत दिनों बाद ब्लॉग पे मुलाकात है ...
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