शनिवार, 25 जून 2016

पुनरपि जनमम् , पुनरपि मरणं पुनरपि जननी ,पुनरपि शयनं।





नुगरा कोई न मिले ,मुझे अवगुण मिलो हज़ार ,

इक नुगरे  के शीश पर ,लख -पापन का भार। 

                      (२ )

मूरख का मुख बंब है ,बोले बचन भभँग ,

दारु का मुँह बंद है (चुप्प )है ,गुरु रोगन ब्यापे अंग। 

                    (३)

मैंने अपने जीने की राह को आसाँ कर लिया है ,

कुछ से मुआफ़ी मांग ली है ,कुछ को मुआफ कर  दिया है। 

काल चिंतन :चिंता ,निराशा ,क्रोध ,लालच और वासना (डिज़ायर )-मृत्यु के ये पांच एजेंट हैं ,जो निरंतर हमें मौत के मुँह में ले जा रहे है। 

जन्म -मृत्यु चक्र से मुक्त होना है तो इन पाँचों  से बचके निकलिये। वर्ना -

पुनरपि जनमम् , पुनरपि मरणं   

पुनरपि जननी ,पुनरपि शयनं। 

https://www.youtube.com/watch?v=z7RR73532OQ

1 टिप्पणी:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

ज्ञान सागर हिलोयें ले रहा है आपके ब्लॉग पर ... हर छंद के गहरे मायने हैं ...
राम राम जी ...