माननीय भीम राव अम्बेडकर जयंती पर विशेष :मूर्खों का मुकाबला
राहुल गांधी हैदराबाद जाते हैं तो अम्बेडकर की तुलना रोहित वैमुला से कर बैठते हैं। श्रीनगर जाते तो अफ़ज़ल गूर (कांग्रेस के गुरु जी )से करते। वो कहाँ पर क्या बोल दें इसका कोई निश्चय नहीं। मूर्खता में महामूर्ख कहा जा सकता है कांग्रेस के इस शहजादे को जिसे न राजनीति की समझ है न समाज विज्ञान की। किसी ने अपनी माँ का दूध पीया है तो इस शहजादे को मूर्खता में मात देकर दिखाये। महामूर्खता में दुनिया भर में इस शहजादे को कोई सानी नहीं।
इसलिए मूर्खता में मायावती चाहे तो भी शहजादे को मात नहीं दे सकतीं। अब बहन मायावती विधिवत पढ़ी लिखी तो हैं नहीं उनकी बुद्धि माननीय काशीराम जी से आगे की बात नहीं सोच सकती। इसलिए उन्होंने भीम राव अम्बेडकर की तुलना काशीराम जी से कर दी। जिनका भारतीय राजनीति में योगदान बस इतना भर है ,उन्होंने नारा दिया -
तिलक तराजू और तलवार ,इनको मारो जूते चार।
सवर्णों को जूते मारो खुले आम बोलते थे काशीराम -चूढे चमार बैठे रहे बाकी लोग जा सकते हैं। आज किसी को ऐसा कहके दिखाओ लेने के देने पड़ जाएंगें।
और वो डीएस ४ (दलित सोशलिस्ट फ़ोरम ) को भी को अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए आज बहुजन समाज(वादी )पार्टी बनना पड़ा है। सवर्णों को ज्यादा टिकिट मिलते हैं यहां। मनुवाद को कोसते कोसते मायावती खुद मनुवादी हो गईं हैं।
राहुल गांधी हैदराबाद जाते हैं तो अम्बेडकर की तुलना रोहित वैमुला से कर बैठते हैं। श्रीनगर जाते तो अफ़ज़ल गूर (कांग्रेस के गुरु जी )से करते। वो कहाँ पर क्या बोल दें इसका कोई निश्चय नहीं। मूर्खता में महामूर्ख कहा जा सकता है कांग्रेस के इस शहजादे को जिसे न राजनीति की समझ है न समाज विज्ञान की। किसी ने अपनी माँ का दूध पीया है तो इस शहजादे को मूर्खता में मात देकर दिखाये। महामूर्खता में दुनिया भर में इस शहजादे को कोई सानी नहीं।
इसलिए मूर्खता में मायावती चाहे तो भी शहजादे को मात नहीं दे सकतीं। अब बहन मायावती विधिवत पढ़ी लिखी तो हैं नहीं उनकी बुद्धि माननीय काशीराम जी से आगे की बात नहीं सोच सकती। इसलिए उन्होंने भीम राव अम्बेडकर की तुलना काशीराम जी से कर दी। जिनका भारतीय राजनीति में योगदान बस इतना भर है ,उन्होंने नारा दिया -
तिलक तराजू और तलवार ,इनको मारो जूते चार।
सवर्णों को जूते मारो खुले आम बोलते थे काशीराम -चूढे चमार बैठे रहे बाकी लोग जा सकते हैं। आज किसी को ऐसा कहके दिखाओ लेने के देने पड़ जाएंगें।
और वो डीएस ४ (दलित सोशलिस्ट फ़ोरम ) को भी को अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए आज बहुजन समाज(वादी )पार्टी बनना पड़ा है। सवर्णों को ज्यादा टिकिट मिलते हैं यहां। मनुवाद को कोसते कोसते मायावती खुद मनुवादी हो गईं हैं।
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