बुधवार, 8 अप्रैल 2009

जूते का स्वर

आज जूते का स्वर सबसे ऊंचा है ,जूता प्रजातंत्र को रास्ता दिखा रहा है ,संसदीय और अभद्र भाषा का मतलब बदल गया है ,कभी कहा गया था ,जब बन्दूक मुकाबिल हो तो ,अखबार निकालो ,आज वाही काम जूता ज्यादा मुस्तैदी से कर रहा है .जूता फेंका गया था चिदंबरम पर ,लगा जाकर तित्लेर को ,कांग्रेस की आँखे खुल गई ,१९८४ के दंगो के बाद से इस पार्टी ने दिल और दिमाग का इस्तेमाल बंद कर दिया था ,जरनैल सिंह के एक जूते ने दिल और दिमाग दोनों को०सक्रिय कर दिया .चुनाव से ठीक पहले इस पार्टी ने सीबी आई की मार्फ़त आम आदमी की आँख मैं धूल झोंकने की कोसिस की , टाइटलर और सज्जन कुमार को क्लीन चित देकर ,अभी कोर्ट का फ़ैसला आना बाकी था ,कांग्रेस हां इ कमान का उससे पहले आगया ,इसे कहते हैं ख़ुद मुख्त्यारी ,सेल्फ गोल .गणेश शंकर विद्यार्थी बन गए पत्र कार जरनैलसिंह ,जब ताव्प मुकाबिल हो तो जूता निकालो .

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