शनिवार, 30 नवंबर 2019

ज़हर की पुड़िया और भारतीय लोकतंत्र

ज़हर की पुड़िया और भारतीय लोकतंत्र
"We Will Win Maharashtra Floor Test," Says Sonia Gandhi

सुना है  इन दिनों केंद्रीय सुल्तानों ने भारत की फ़िज़ा में ज़हर घोल दिया है। भारतीय लोकतंत्र विषाक्त हो गया है इस ज़हर को बे -असर करने के लिए एक मल्लिका ने शिवसेना से समझौता किया है। सुना यह भी गया है फडणवीस जी ने लोकतंत्र को बंधक बना लिया था।
यह तो वही बात हो गई जिसे लोकतंत्र के इम्तिहान में सबसे ज्यादा नंबर मिले वह फस्ट नहीं आया है। इस परीक्षा में  हार जाने वाले तीन फिसड्डी मिलकर कह रहे हैं फ़स्ट हम आएं हैं क्योंकि हमारे कुल तीनों के मिलाकर नंबर ज्यादा हैं।
इस मलिका को विशेष कुछ पता नहीं है अपने आपको 'आज़ाद  'कहने वाला एक 'गुलाम ' जो अपने को नबी भी बतलाता है जो कुछ लिखकर दे देता है यह वही बोल देती है। रही सही कसर एक 'पटेल' पूरी कर देते हैं जो अहमद भी हैं और पटेल भी।
वह  सेकुलर ताकतों का गठ जोड़ कहा जाता है। जहां हारे हुए तीन जुआरी  सेकुलर हो जाते हैं शकुनी  की तरह पासे फेंक कर।  जीते हुए साम्प्रदायिक कहलाते हैं इनकी जुबां में।
आज यह सवाल पहले से ज्यादा मौज़ू हो गया है : भारत में कौन कहाँ कब 'सेकुलर' हो जाए इसका कोई निश्चय नहीं। किसी जेल की चौहद्दी से एक ईंट सरक जाए तो वहां से तीन सेकुलर निकल आते हैं। ज़मानत पे छूटे लोग कल को नीतीश से चुनाव पूर्व गठबंधन करके खुद को सेकुलर घोषित कर सकते हैं। ये ट्रेन में भी सेकुलर कम्पार्ट की बात कहते रहें हैं। मुंह में बीड़ा रखकर यह साहब उकीलों की तरह ज़बान को बिगाड़ कर बोलते हैं चरवाहा विश्वविद्ययालय से यह ज़नाब एम.ए एल.एल.बी वगैरह वगेहरा  हैं।
काम की बात पे लौटते हैं वो 'मलका 'उद्धव साहब के शपथ ग्रहण समारोह में न खुद पहुंची न अपने लौंडे को पहुँचने दिया कल को सरकार गिर जाए तो यह कह सकती है हम तो इसलिए दिल्ली छोड़ के गए ही नहीं थे।हमें पहले से पता था। लेकिन मरता क्या न करता लोकतंत्र को विषाक्त होता हम कैसे देखते ?



बहरसूरत इस मल्लिका का योगदान भारतीय लोकतंत्र को जीवित रखने में अभूत -पूर्व रहा है। उस  मराठा शौर्य को इस विषदंतों ने अपने निश्चय से गिरा दिया है जिसने महारानी लक्ष्मी बाई के साथ मिलकर भारत की चौतरफा हिफाज़त करते अपने जान गंवाई थी जिसके लिए पूरा अखंड भारत मायने रखता था एकल महाराष्ट्र नहीं। सलामत रहे यह रक्तबीज जिसने खुद ही  नेहरुवियन खूंटा उखाड़ फेंका है जो अपने पति के हत्यारों की आँखें निकालने की कौन कहे उन्हें माँ कर देती है। यह इस देश की शौर्य परम्परा वीरांगनाओं की तौहीन है। असली ज़हर की पुड़िया कौन है ?लोग एक  दूसरे से पूछ रहे हैं। 

गुरुवार, 28 नवंबर 2019

Au revoir

au re-voir! is a french exclamation meaning good bye for now (till we meet again ) tweeted Ms Fadnavis upon his husband resignation as C.M.Maharashtra on Tuesday .

पलट के आऊँगी शाखों पे खुश्बूएं लेकर ,

ख़िज़ाँ की ज़द में हूँ मौसिम ज़रा बदलने दे।

यही उदगार व्यक्त किये थे अमृता देवेंद्र  फडणवीस ने देवेंद्र के इस्तीफे पर।

Mumbai: 
Former Maharashtra Chief Minister Devendra Fadnavis's wife Amruta Fadnavis on Tuesday tweeted a poetic verse hours after her husband resigned from his post. "Will return and bring back fragrance on branches, it's autumn season, wait for the change in weather," she tweeted in Hindi.
"Thanks Mah (Maharashtra) for memorable five years as your Vahini (sister-in-law)!The love showered by you will always make me nostalgic! I tried to perform my role to best of my abilities-with desire only to serve and make a positive difference," she added.
शख्सियत :अमृता देवेंद्र फडणवीस 
आपका जन्म महाराष्ट्र के नागपुर में नौ अप्रैल उन्नीस सौ उन्हासी को हुआ।आपकी माता चारुलता राना डे प्रसूति -विज्ञान की माहिर तथा आपके पिताश्री नेत्र -विज्ञान के माहिर हैं। आपका विस्तारित (संयुक्त )परिवार महिलाओं की अभिरुचि  के अनुरूप शिक्षा और स्वतंत्र विचार देने का कायल (हामी )रहा है। आपके खानदान में औरत को एक ख़ास दर्ज़ा मिलता आया है। आपकी स्कूली शिक्षा संत जोज़फ़ स्कूल नागपुर में हुई। ग्रेजुएशन भी आपने जी.एस. कॉलिज ऑफ़ कॉमर्स एन्ड इकोनॉमिक्स ,नागपुर से ही  किया  .
अनन्तर आपने एम.बी.ए (फाइनेंस )किया। सिम्बायोसिस स्कूल ,पुणे से आपने टैक्सेशन लॉ का कोर्स पूरा  किया।  पढ़ाई लिखाई के साथ -साथ आपकी खेलकूद में भी न सिर्फ शिरकत रही है अंडर सिक्सटीन लान टेनिस का आपने राज्य स्तर पर प्रतिनिधित्व किया है। आप शास्त्रीय एवं लोकप्रिय गायन में भी दखल रखती हैं।
बैंकर के रूप में आपको एक मुकाम हासिल है। 
Amruta Fadnavis.jpg
Vice-President, Corporate Head(West India), Axis Bank
   

बुधवार, 27 नवंबर 2019

Climate Change a Myth and Or Realty ?



 Climate Change a Myth and Or Realty ?  

बिला शक जलवायु परिवर्तन हमारी हवा ,पानी और मिट्टी में मानवीयक्रियाकलापों (करतूतों और कुदरत के साथ किये गए हमारे सौतिया व्यवहार )द्वारा पैदा बदलाव की गवाही दृष्टा भाव से देखे जाने के साक्षी एकाधिक संस्थान सरकारी गैरसरकारी संगठन बन रहे हैं। इनमें शरीक हैं :
(१ )इंटरगावरनमेंटल पैनल आन क्लाइमेट चेंज बोले तो जलावायु में आये बदलाव से सम्बद्ध  अंतर् -सरकारी (शासकीय) पैनल
(२ )जैव वैविध्य और पारि -तंत्रीय सेवाओं से जुड़ा - इंटरगावरनमेंटल साइंस पॉलिसी प्लेटफॉर्म
(३ )जलवायु केंद्रीय जन-नीति  शोध संस्थान इत्यादि
सभी ने समवेत स्वर एकराय से साफ -साफ़ माना है और बूझा भी है ,हमारा प्रकृति प्रदत्त पर्यावरण तंत्र  कुदरती (प्राकृत हवा पानी मिट्टी ) और तमाम पारितंत्र (इकोलॉजिकल सिस्टम्स )एक- एक करके लगातार दरकते -टूटते रहें हैं। इनके खुद को बनाये रखने ,साधे रहने की संतुलित बने रहने की कुदरती कूवत चुक गई है।
इसी के चलते अनेक प्राणी -प्रजातियां अब विलुप्त प्राय : हैं कितनी ही अन्य प्रजातियां रेड डाटा बुक में जगह बना चुकीं हैं इनके इक्का दुक्का चिन्ह ही अब दिखलाई दे रहे हैं। अकेले टाइगर का हम क्या करेंगें। पृथ्वी का कुदरती उर्वरा मिट्टी  का बिछौना छीज रहा है (टॉप साइल इरोजन या मिट्टी  की ऊपरी उपजाऊ परतों का अपरदन  ),जंगलों का सफाया सरे -आम ज़ारी है। नतीजा: हमारे समुन्दर तेज़ाबी होकर कराहने लगे हैं। समुद्री तूफानों की बेहद की  विनाशलीला अब हैरानी पैदा नहीं करती। अब तो ऑस्ट्रेलया का  जंगल भी सुलगने लगा है। केलिफोर्निया राज्य की तो यह नियति ही बन चुका है। भूमंडलीय तापन अब जो दिन दिखला दे वह थोड़ा।

क्या यह सब मिथक है मिथकीय अवधारणा मात्र है फैसला आप कीजिए। 

क्या किया जाए इस विनाश लीला को थामने के लिए ?  

ग्लोबी तापमानों की बढ़ोतरी को लगाम लगाने के लिए यह निहायत ज़रूरी है के २०३० तक कमसे कम १.५  सेल्सियस और ज्यादा से २ सेल्सियस यानी २०१० के विश्वव्यापी तापन स्तर पर थाम विश्व्यापी बढ़ते  तापमानों को थाम  लिया जाए।  दूसरे शब्दों में वर्तमान ४५ फीसद मानव-जनित उत्सरजनों को घटाकर पच्चीस फीसद पर लाना सुनिश्चित किया जाए। 

 कालान्तर (२०५० /२०७० तक) में  उत्सरजनों को ज़ीरो लेवल तक लाना भी अब लाज़मी समझा जा रहा है।
 हो ठीक इसका उलट  रहा है यह तो वही हो गया मर्ज़ बढ़ता गया ज्यों ज्यों दवा की। 
आखिर इस सबकी वजहें क्या है ?

विकसित देश अपना कथित जीवन स्तर नीचे लाने के लिए अपना बढ़ता हुआ फुट प्रिंट घटाने को ज़रा भी तैयार नहीं हैं। न ही तकनीकी अंतरण को यानी  उत्सर्जन घटाने वाली प्रौद्योगिकी मुफ्त में विकासमान तथा विकाशशील देशों को मुहैया करवाने को राज़ी हैं। कार्बन बजट की बातें भी बे -असर ही साबित हुई हैं जबकि चीन और भारत जैसे आबादी संकुल राष्ट्रों अफ्रिका महाद्वीप के देशों के लिए बढ़ती आबादी को जीवन जीवन कहने  लायक ज़रूरतें मुहैया करवाना यथा पानी बिजली सड़क जैसी सुविधाएं मुहैया  अब भी   कहीं आंशिक और कहीं पूरी तौर पर  हासिल नहीं हैं।पर्याप्त पोषण की कौन कहे ?
विकसित ,गैर -विकसित सभी मुल्कों द्वारा नीति गत बदलाव के तहत ग्रीन ऊर्जा , वैकल्पिक ऊर्जा ,सौर ,पवन ,भू ,ऊर्जाओं ,जैव -गैस का अंशदान कुल ऊर्जा  बजट में बढ़ाते जाना अब बेहद ज़रूरी हो गया  है।लेकिन क्या यह सब हो पायेगा ?
पीने लायक पानी पर्याप्त पोषण सब के लिए अन्न कहाँ से आएग ?गरीब अमीर के बीच की खाई कम नहीं हो रही है। 
मुफ्त बिजली खाद पानी नहीं सब के लिए बिजली पानी किसान को जैविक खाद स्थानीय उपायों से ही  मुहैया करवाया जाए। 
भविष्य वाणी है अगर कथित विकास मानव-जनित  उत्सर्जन यूं ही ज़ारी रहे तब एशिया के तकरीबन तीस करोड़ सत्तर लाख लोगों को जल - समाधि लेने से नहीं रोका जा सकेगा। तटीय क्षेत्रों को जल समाधि लेने का ख़तरा किताबी नहीं है इसकी जब तब आंशिक झलक दिखलाई देने लगी है। 
२०१५ में प्रदूषण पच्चीस लाख लोगों को खा चुका है। उत्तर भारत के चेहरे पे मुखोटा लग रहा है। मास्क मास्क और मास्क खामोशी के साथ अपनी बिक्री बढ़ा रहा है। 
गरीब दुनिया सोशल सेक्युरिटी ज्यादा  औलाद पैदा करने में तलाश रही है।अमीर देशों का मध्य वर्ग गरीबी की ओर आने लगा है गरीब देशों का दरिद्र नारायण सुदामा अपने ज़िंदा रहने की शर्तें नहीं पूरी कर पा रहा है जीवन की परिभाषा के हाशिये पे आ गया है। आसपास  त्राण को  कोई कृष्णा  नहीं है। खुदा ही हाफ़िज़ है। 
हमारे नगर वगैर रूह के निरात्मा जीवित हैं। कोई मरे हमें क्या हम तो सलामत हैं हमारी बला से। गरीब कहे हैं :आलतू - फ़ालतू आई बला को टाल तू।पर्यावरण पारितंत्रों की मौत प्राणी मात्र की मौत है। हमारी साँसें हवा पानी मिट्टी सभी तो सांझा है परस्पर पार्थक्य   कहाँ हैं ?हम सब एक  ही कायनात कुदरत के अलग -अलग दीखते प्रतीत होते  हिस्से हैं एक दूसरे से सम्बद्ध एक दूसरे के पोषक संवर्धक।इसे बूझना ज़रूरी है।  

गुरुवार, 7 नवंबर 2019

"क़ानून बनाम लूट"के रखवाले


"क़ानून बनाम  लूट"के रखवाले

हमारी सम्वेदनात्मक तरफदारी और तदानुभूति शहरी फौज (शहर की हिफाज़त करने वाली पुलिस )के साथ है। अलबत्ता वकीलों का हम सम्मान करते हैं लेकिन लूट में अगुवा उकीलों का नहीं जो सरे आम काले कोट की आड़ में ड्यूटी पर तैनात पुलिस अफसरान को इन दिनों पीटते देखे जा सकते हैं। ये वकीलनुमा -उकील 'वकील' नहीं हैं -उकील हैं। जो अभी मुज़रिम की ओर  दिखाई देते हैं और बोली बढ़ने पर थोड़ी देर बाद ही पीड़ित की ओर । शहर का रक्षक ऐसी छूट नहीं ले सकता। ले भी ले तो बनाये नहीं रह सकता। उकील बनने से पहले आप कहीं से भी तालीम की रसीदें (डिग्री) ले सकते हैं,  मान्य या फ़र्ज़ी यूनिवर्सिटी से और धड़ल्ले से अपनी प्रेक्टिस उका -लत या मुक्का -लात शुरू कर सकते हैं। पैसे की लात ज्यादा वजनी होती है।
पुलिस का सिपाही बनने के लिए फिटनेस होना लाज़मी है ,ट्रेनिंग भी खासी कठोर  भुगतानी पड़ती है। उकाळात में ठेका लिया जाता है केस जितवाने का ,वकालत असल होती है। वकील इंटेलेक्चुअल कहलाते हैं उकील विविधता लिए होता है।पुलिस वाला हो सकता है किसी ख़ास जात -बिरादरी का न भी बन पाता हो उकील इस मामले में विविधता लिए होता है। राजधानी दिल्ली में इन दिनों ऊकिलों की लीला चल रही है। तमाश बीन मत बनिए चने के साथ घुन भी  पिस जाता है।
वकील हमारे लिए  सदैव ही आदर के योग्य रहें हैं ऊकीलों से हमारा क्या किसी का भी पाला न पड़े ,सरोकार भगवान न कराये। 

बुधवार, 6 नवंबर 2019

"भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता। भीड़ अनाम होती है ,उन्मादी होती है।"

"भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता। भीड़ अनाम होती है ,उन्मादी होती है।" तीसहजारी कोर्ट की घटना को मानव निर्मित कहा जाए ,स्वयंचालित ,स्वत : स्फूर्त या हालात की उपज ?बहस हो सकती है इस मुद्दे पर। मान लीजिये नवंबर २ ,२०१९ तीसहजारी घटना-क्रम लापरवाही का परिणाम था ,जिस की सज़ा तुरत -फुरत माननीय उच्चन्यायालय,दिल्ली ने सुना दी। पूछा जा सकता है : नवंबर ४,२०१९  को जो कुछ साकेत की अदालत और कड़कड़ -डूमाअदालत में  घटा वह भी लापरवाही का परिणाम था। क्या इसका संज्ञान भी तुरता तौर पर दिल्ली की उस अदालत ने लिया।
तर्क दिया गया गोली चलाने से पहले पूलिस ने अश्रु गैस के गोले क्यों नहीं दागे ,लाठी चार्ज से पहले वार्निंग क्यों नहीं दी। उत्तर इसका यह भी हो सकता है :क्या जो कुछ घटा नवंबर २ को उसकी किसी को आशंका थी?
यह एक दिन भी कचहरी के और दिनों जैसा ही था। जो कुछ घटा तात्कालिक था ,स्पोटेनिअस था ,चंद-क्षणों की गहमा गहमी और बस सब कुछ अ-प्रत्याशित ?
तर्क दिया गया ,पुलिस धरने पर बैठने के बजाय देश की सबसे बड़ी अदालत में क्यों नहीं गई। हाईकोर्ट के तुरता फैसले के खिलाफ ?
चार नवंबर को अपना आपा खोने वाले  भाडू (भा -डु ,वकील ,प्लीडर ) यदि हाईकोर्ट के फैसले से असंतुष्ट थे ,तब वह क्यों नहीं अपेक्स कोर्ट गए खाकी -फायरिंग के खिलाफ।
काला -बाना क्या और ज्यादा 'काला' नहीं हुआ ?कौन सी कसर रख छोड़ी भाडूओं  ने ?जेल पुलिस की कई वैन ,जीपें ,मोटरसाइकिलें ,तीसहजारी के जेल परिसर को आग के हवाले करने का खामियाज़ा कौन भरेगा। क्या यह वाहन  और परिसर लावारिस थे ?
मरता क्या न करता। आये दिन खाकी पिट रही है। रईसजादों,मज़हबी इंतहा पसंदों  के हाथों। ट्रेफिक पुलिस को  कुचल कर अमीर -ज़ादे गाड़ी भगा ले जाते है। ये गाड़ियां पेट्रोल से नहीं शराब से चलती हैं। नशे और दौलत के नशे में चूर रहतीं हैं। कौन ज्यादा 'काला' इस पर बहस की जा सकती है।
प्रजातांत्रिक देश में वी.आई.पी  सिक्योरिटी में ज्यादा पुलिस 24x7x365 क्यों बनी रहती है ?उनमें और आर्मी के बडीज़ में क्या फर्क है ?कौन ज्यादा कष्ट में है ?
पुलिस बंदोबस्त के दरमियान पुलिस कर्मियों को एक छोटा पेकिट (पांच रूपये )वाला ग्लूकोज़ का पकड़ा दिया जाता है ,क्या बंदोबस्त के दौरान भूख नहीं लगती।
खाकी बदनाम हुई 'डॉलिंग' तेरे लिए। पूछा जा सकता है ये डॉलिंग कौन है ?दिल्ली की पब्लिक ?    

शनिवार, 2 नवंबर 2019

Cigarettes give you a smoker's face

उम्र से पहले उम्रदराज़ दिखना है तो स्मोकिंग शुरू कर लें। प्रत्येक सिगरेट जो आप पीतें हैं वह अपना रजिस्ट्रेशन नंबर छोड़ जाती है आप की गम लाइन ,मसूड़ों को धीरे -धीरे पी जाती है। दांतों की आब (पानी )ले उड़ती है इनेमल छीज जाता है। 
स्मोकिंग स्टेंस बाकी रह जातें हैं मुक्तावली (दन्तावली )में। तीस के पार आते हुए आप बुढ़ाने लगते हैं बस किशोरावस्था में धूम्रपान शुरू कर लें। चमड़ी में लटकन झोल शुरू हो जाएगा देर सवेर झुर्रीदार हो जाएगा आपका चेहरा।
दांतों में केविटी फॉर्मेशन ,ब्रेसिस लगवाने की मजबूरी जहां शुगर बेबीज़ को भुगतनी पड़ती है किशोर होते हुए ,वहीँ स्मोकर्स कुछ और तोहफे भी साथ लिए रहतें हैं। 
उम्र घटती है माशूकाएं छिटकती हैं ,दिल और दिमाग की परेशानियां अलग , Cardio-vascular problems (रक्तसंवहन एवं हाइपर -टेंशन ),स्ट्रोक और इरेक्टाइल डिस्फंक्शन ,स्पर्म की मोटिलिटी (प्रजनन क्षमता )में गिरावट मामूली बातें हैं। चाहिए स्मोकर्स फेस ?
हर फ़िक्र को धुएं में कमाता चला गया। देव साहब ने धुएं के छल्ले हमारे ज़माने में खूब बनाये थे। एक फिल्म में तो जोनिवाकर साहब अपनी माँ को आता देख धुंआ वापस मुँह में खींच लेते हैं। अब ऐशट्रे 'ड्राइंग' में रखना नफासत में शामिल नहीं है। अब तो प्रदूषण ही काफी है आदमी को मारने के लिए हवा गंधाने लगी है पानी 'यमुना 'बन गया है। और गंगा पिहोवे  का तालाब। आप चाहें तो अपना श्राद्ध मना लें पिंड दान कर लें। अलबत्ता पोपला मुंह लेकर आप सीरिअ किसर बन सकते हैं। बने रह सकते हैं ब-शर्ते कोई माशूका मिल जाए। 

Smoking cigarettes just keeps getting uglier and uglier.
A new report has confirmed that there’s science behind the term, “Smoker’s Face,” coined in the 1980s for how cigarette habits change one’s appearance. Smokers who looked older than their age had two genetic variants that non-smokers didn’t have, according to the findings published in PLOS Genetics.
And it gets uglier: Tobacco use in movies rated PG-13 increased 120 percent between 2010 and 2018 and jumped 57 percent in all films, according to a new report by the Centers for Disease Control and Prevention. Experts at the US Surgeon General’s Office have long warned that Hollywood’s depictions of tobacco as a “social norm” will make impressionable PG-13 audiences “more likely to smoke.”
As the hidden dangers of e-cigarette and vape use have slowly been revealed, many young people have said that they are now turning back to tobacco cigarettes to feed their nicotine addiction. The CDC also added that teen tobacco use has been climbing since 2018 as vaping has grown in popularity.
According to SmokeFree.gov, smoking can lead to several unattractive outcomes.
Smoking cigarettes leads to yellowing of the teeth, more cavities and an increased risk of losing your teeth at a young age; it makes your skin dry, sallow and more wrinkled due to a loss of elasticity caused by smoke; you may also develop tell-tale wrinkles around your mouth caused by puckering. Depending on when you start smoking, these symptoms can set in during your early 30s.
And, just to restate what all should know by now, the CDC reminds us that tobacco use is the leading culprit behind preventable death in the United States. Common fatal illnesses caused by smoking and secondhand smoke include lung cancer, heart disease and chronic obstructive pulmonary disease.
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