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गुरुवार, 30 अप्रैल 2015

झंडा अक्ल का भी होता है



























 भले विभिन देशों समाजों और राजनीतिक व्यवस्थाओं में काम करने की प्रणालियां अलग रहीं हों

पर सभी ने अपनी प्रगति दर्शाने के लिए झंडे का सहारा लिया है। और भाषा भेद के बावजूद सबने एक ही मुहावरे का सहारा लिया है :झंडा ऊंचा रहे हमारा। झंडा डंडे की पगड़ी होता है। हर देश और राजनीतिक  व्यवस्था चाहती है उसका झंडा सदैव ऊंचा रहे ये तो सामने वाले से हार जाने पर ही सफ़ेद झंडे का सहारा समर्पण (हथियार डालने )के तौर पर लिया जाता है।



बड़ी विचित्र बात है भारत में एक पार्टी ('आम आदमी पार्टी 'संक्षिप्त रूप 'आप ')ऐसी है जिसने झंडा छोड़के झाड़ू का सहारा लिया है। अब अगर सामने वाला ताकतवर हुआ तो आपकी झाड़ू छीनकर उसी से आपको मारेगा ,केजरीवाल के साथ यही हो रहा है। कुछ लोग तो अब ये संदेह व्यक्त करने लगें हैं कहीं ये सरकार भी तो पार्टी के पदस्थ मंत्री की नकली डिग्री की तरह नकली (फ़र्ज़ी )तो नहीं है।

बेहतर हो केज़रीवालसाहब एक झंडा पार्टी के कुछ समझदार लोगों की सहायता से तैयार करवा लें ,पर ये काम भी कैसे हो पार्टी से समझदार लोगों को तो उन्होंने बाहर निकाल दिया। अभी उनकी सरकार के एक मंत्री की नकली डिग्री के खिलाफ प्रदर्शन हो रहा है कल झाड़ू से पिटाई भी हो सकती है। खुदा खैर करे।

बात झंडे की चल रही थी। झंडा अक्ल का भी होता है।

इस दौर में एक आदमी और है उसके पास अक्ल का झंडा भी नहीं है वह किसानों का नेता बना घूमरहा है। 

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (01.05.2015) को (चर्चा अंक-1962)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।

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  2. करारा व्यंग्य किया है सर जी। धन्यवाद।

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  3. कजरी साहब की नज़र में झंडे की अहमियत नहीं होगी ... और वो चाहेंगे तो अपना बहाना खोज लेंगे नहीं तो माफ़ी मांग लेंगे ... दिल्ली की जनता तो वैसे भी माफ़ कर देती है हर किसी को ..

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