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मंगलवार, 12 जुलाई 2011

सहभावित कविता :खामोश अदालत ज़ारी है .-डॉ .नन्द लाल मेहता वागीश ,सहभाव :वीरुभाई .

(वागीश ,सहभाव :वीरुभाई) . सहभावित कविता :खामोश अदालत ज़ारी है .-डॉ .नन्द लाल मेहता वागीश ,सहभाव :वीरुभाई .
खामोश अदालत ज़ारी है ,दिल्ली का संकेत यही है ,
वाणी पर तो लगी है बंदिश ,अब साँसों की बारी है .
खामोश अदालत ज़ारी है .

हाथ में जिसके है सत्ता वह लोकतंत्र पर भारी है ,
गई सयानाप चूल्हे में .बस चूहा एक पंसारी है .
कैसा जनमत किसका अनशन ,हरकत में जब शासन ,
संधि पत्र है एक हाथ में दूजे हाथ कटारी है .
खामोश अदालत ज़ारी है .
दिल्ली नै पुरानी दिल्ली ,परकोटे की रानी दिल्ली ,
सदियों से है लुटती आई ,मुग़ल फिरंगी या अबदल्ली,
दिल्ली ने यह भी देखा है ,दूध की है रखवाली बिल्ली ,
चोर- चोर मौसेरे भाई ,अफरा तफरी भारी है ,
कुर्सी- कुर्सी होड़ मची है ,पांच साल में बारी है ,
खामोश अदालत ज़ारी है .
ऐसी कथा लिखी शातिर ने ,कुटनी एक सन्नारी है ,
औरत, चैनल, मर्द, जवानी ,जफ्फा -जफ्फी ज़ारी है ,
सांसद बैठे लाल बुझक्कड़ ,खिल- खिल- खिल, खिलकारी है ,
बे -मतलब से एक अधे -रीड़ ,हंसती हाहाकारी है ,
यही नांच इंडिया ल्फ्टर ,सभी कला बलिहारी है ,
खामोश अदालत ज़ारी है .

राजनीति है ऐसी नटनी ,साथ मदारी काला चौगा ,इज्ज़त चादर एक चौकी है ,
हर नेता है बना दरोगा ,खौफ की ज़द में रात बिरानी ,
दिन भी खुद पर है शर्मिन्दा ,ऐसी काली करतूतों के ,
बीच रहा मैं अब भी ज़िंदा ,
भारत तो जा चुका भाड़ में .अब इंडिया की बारी है ,
खामोश अदालत ज़ारी है .

12 टिप्‍पणियां:

  1. हाथ में जिसके है सत्ता वह लोकतंत्र पर भारी है
    thoughtful poem

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  2. भारत तो जा चुका भाड़ में.
    अब इंडिया की बारी है,
    ज्यादा समय इसको भी नहीं लगेगा,
    ऐसी ही रान्जनीति रही तो

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  3. खूब कहा!वीरुभाई....
    ...अब इंडिया की बारी है !
    राम-राम ...

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  4. पांच साल में बारी है
    लूटन की लाचारी है ...

    लाजवाब ... सोचने को मजबूर करती है रचना ...

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  5. चोर- चोर मौसेरे भाई ,अफरा तफरी भारी है ,
    कुर्सी- कुर्सी होड़ मची है ,पांच साल में बारी है ,
    खामोश अदालत ज़ारी है ....
    Loved it.
    Although it looks funny but conveys a thoughtful message !!

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  6. बहुत खूब खामोश अदालत जारी है
    राजनीति के दंगल में पिटती जनता बेचारी है |
    आज आपका यह रूप पसंद आया , बधाई

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  7. तीखा कटाक्ष करती सहभावित कविता.... डॉ .नन्द लाल मेहता वागीश ,सहभाव :वीरुभाई आप दोनों को हार्दिक बधाई...

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  8. चोर- चोर मौसेरे भाई ,अफरा तफरी भारी है ,
    कुर्सी- कुर्सी होड़ मची है ,पांच साल में बारी है ,
    खामोश अदालत ज़ारी है ....

    Sateek ...Yahi haal hai...

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  9. जी ,सच कहा आपने खामोश अदालत जारी है

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