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शनिवार, 21 मई 2011

डॉ .चाचाजी .

वृन्दावन वालों की धरमशाला !अपर रोड हरिद्वार !यह पता मेरे लिए एक मामूली पता नहीं था यहाँ हमारे डॉ .चाचाजी रहते थे .प्रखर आर्य समाज के प्रवक्ता रहे ता -उम्र चाचाजी .गुलावठी (बुलंदशहर )जैसी छोटी सी जगह को छोड़ कर चाचाजी हरिद्वार चले आये थे .वहां जगन फार्मेसी हमारे बाबा के नाम से चल रही थी वही उसके संस्थापक थे .सारा कुनबा उसी से पल रहा था .बड़े कुनबे के रोज़ के झगडे से दूर चाचाजी इस हरी की नगरी में चले आये थे .स्थापित की थी -"अमन फार्मेसी ,हरिद्वार "अपर रोड वृन्दावन वालों की धरमशाला के बाहर दूकान पर आज भी एक बोर्ड टंगा है ,ताकि सनद रहे -यहाँ एक डॉ .राम कृपाल शर्मा रहते थे .डॉ .चाचाजी रहते थे ।एक छोटी सी धर्मशाला की कोठरी में .उसी में रसोई थी एक छोटे से हिस्से में जब चाची बैठ जातीं थीं वह एक भरी पूरी रसोई लगती थी .चाची सिर्फ अन्नपूर्णा नहीं थीं ,मुस्कान भी परोसतीं थीं ,लाड भी .थाली भर जाती थी उनके दुलार से .गर्म रोटी दाल से मलाई वाली दही से ,अचार से ताज़ा सलाद से .और ....
कितने लोग यहाँ अपनों के फूल (अस्थियाँ )लेकर पहुंचे इसका कोई हिसाब नहीं है ,तीन मर्तबा तो हम ही पहुंचे .एक मर्तबा अपनी पत्नी के ,दूसरी मर्तबा पिता श्री और तीसरीबार अम्मा के फूल लेकर पहुंचे थे .
हम तो गाहे बगाहे अपने साले सालियों उनकी पत्नियों को भी लेकर पहुंचे ।
चाचाजी चुप चाप अपनी छरहरी काया से बिस्तर पर बिस्तर लिए कब ऊपर वाला विशेष अथितियों वाला कमरा खुलवा के बिस्तर जंचा देते थे किसी को कोई खबर नहीं होतीथी .बेटे जी ही निकलता था उनके मुंह से या फिर वीरुजी .
बेकरी के ताज़े बिस्किट चाय के साथ ,खाने में अमुक हलवाई की मलाई वाली दही लाना न भूलते .बढिया ताज़ी सब्जियां ,गर्मियों में फूल वाली तोरई-घिया -टिंडा सभी तरी वाला बनता .चाचाजी कहते गर्मियों में जलीय अंश वाली तरकारियाँ खानी चाहिए और बरसात में जड़ वाली रतालू ,आलू ,जिमी कंद ,अरबी ,अरबी के पत्तों के पतोड़े ।हरी तरकारियों में कीड़ा लगजाता है .
सुबह जब कभी हम गुलावठी में होते चाचाजीछोटी नहर तक ले जाते .घर के नलके से सब के हाथ मुंह धुलवाते .आँख में साफ़ ताज़े पानी के छींटे पडवाते।
सारे धरम करम पूजा पाठ कर्म काण्ड से चाचाजी का विरोध था ।
अश्थी विसर्जन चाचाजी शुद्ध उच्चारण में श्लोक के साथ खुद करवाते .तौन्दुल पंडितों से, कर्मकांडी पंडों को चाचाजी फूटी आँख नहीं सुहाते थे ।
एक जरा सी चूक ,गलत रोग निदान "'और -चाईतिस का'" ,एक सर्जरी बे -इत्मीनान ,उसके बाद एक और सर्जरी और चाचाजी यूं चले गए .यहाँ तक तो निभ जाता उनकी तेरहवीं .वाले दिन चाची भी चली गईं ।
हरिद्वार अब हमें बे -मानी ,बे -गाना सा लगता है .चाचा श्री के चले जाने के बाद भी हम एक या दो मर्तबा वहां गएँ हैं लेकिन शहर खाली खाली लगा .चाचाजी उस भीड़ से बहुत अलग थे .जो वहां आम होती है .शहर आदमी से होता है आदमी शहर के लिए नहीं होता .

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