क्षणिका :"बिना एहसास के मैं जी रहा हूँ "-नन्द मेहता वागीश ,वीरेंद्र शर्मा ।
बिना एहसास के मैं जी रहा हूँ ,
इसलिए कि जब कभी एहसास लौटें ,
तो ,खैरमकदमकर सकूँ .
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