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रविवार, 26 जून 2016
फ़लसफ़ा
मैंने ग़मों को ख़ुशी में ढ़ाला है ,
मेरे जीने का अंदाज़ निराला है ,
जिन हादसों से मरते हैं लोग ,
उन्हीं हादसों ने मुझे पाला है।
1 टिप्पणी:
दिगम्बर नासवा
27 जून 2016 को 11:53 am बजे
बहुत खूब ... हादसों में पलने वाले किसी बात से डरते नहीं ...
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बहुत खूब ... हादसों में पलने वाले किसी बात से डरते नहीं ...
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