शनिवार, 22 दिसंबर 2012

हर स्तर पर महिला पर प्रभुत्व कायम


हर स्तर पर महिला  पर प्रभुत्व कायम 

करने उसका दमन करने की बलवती इच्छा मर्द पाले रहता है उसी की विकृत परिणिति होता है बलात्कार 

जिसका मकसद उसका तन मन रौंदना ही नहीं परिपूर्ण दमन है किसी जंगली हिंस्र पशु की तरह बिना किसी 

उद्देश्य के जब तब टूट पड़ता है उस पर कथित पेशीय बल धारी आधुनिक मानव .और ऐसा जघन्य अपराध 

करके वह साफ़ बच  जाता है लचर कानूनों के चलते जिनका किर्यान्वयन भी कानूनी तौर पर नहीं अपराधी की 

शक्ल और हैसियत देख के  होता है .

बलात्कार कोई अकेला अपराध नहीं है औरत के खिलाफ .यह एक लाइलाज दीर्घावधि से चला आरहा घातक 

रोग है जो औरत  को जीते जी मार देता है .एक क्रोनिक कंडीशन ,एक खतरनाक किस्म है यह कैंसर की जिससे 

बचाव ही उसका सर्वोत्तम इलाज़ है बाकी कैंसर रोग समूह की तरह . 

और यह बचाव ही एहम सवाल है उस व्यवस्था में जहाँ आम और ख़ास ,आम और वी आई पी ,वी वी आई पी में 

जमीन आसमान का फर्क है .

आधी आबादी  है औरतों की जो अरक्षित है .लेकिन गत पांच सालों में ही मुंबई महानगरी की वी आई पी सुरक्षा 

व्यवस्था में तैनात  पुलिस कर्मियों के संख्याबल में 1200% इजाफा हुआ है .किसी भी समय पर 15-

20%पुलिस 

कर्मी या तो अवकाश पर तैनात होते हैं या मुंबई महानगरी की वी आई पी सुरक्षा में तैनात रहतें हैं .

पुलिस कर्मी पर्याप्त संख्या में हों तो सामाजिक हस्तक्षेप भी फिर से खड़ा किया जा सकता है .फिलवक्त तो 

कोई आगे नहीं आता .न बचाव के लिए न गवाही के लिए .सरकारी छुट्टी मिले गवाह को और परिपूर्ण सुरक्षा और 

पर्याप्त बीमा  कवर तो आज भी अनेक लोग सामने आ जायेंगे .सवाल सामाजिक सुरक्षा का है उस औरत की 

जो कल तक परिवार और समाज की एक महत्वपूर्ण इकाई होती थी .

नारियां हमारे समाज में महत्वपूर्ण पारिवारिक इकाई रहीं हैं .चाहे वह किसी वंश या 

कुल की हों .उनकी मर्यादा रक्षा की सामान्य  धारणा हर पुरुष के मन में होती थी 

.उसकी रक्षा करते समय कोई 

शीलवान पुरुष उनकी जाति  नहीं पूछा करता था .भारतीय मन की इस मर्यादा को 

अगर किसी ने खंडित किया है तो उन राजनीतिक व्यक्तियों ने चाहे वह पुरुष हों या 

नारी ,जो अपनी सुरक्षा के लिए 

पचासों अंग रक्षक साथ लेकर चलतें हैं .उन्हें ऐसे नैतिक मुद्दों पर घड़ियाली  आंसू बहाने 

और आश्वासन देने का कोई हक़ हासिल नहीं है .चाहे फिर वह शीला दीक्षित हों या फिर 

सोनिया गांधी .उन बबुओं 

के बारे में क्या कहा जाए जो भारत भर के युवाओं से मिलते घूम रहें हैं .क्या सिर्फ वोट 

के लिए युवाओं के बीच में घूमना बस यही उद्देश्य है ?उस कथित युवा सम्राट की अब 

तक तो कोई टिपण्णी भी नहीं 

आई .जबकि एक पूरा राष्ट्र उद्वेलित है सांझी संवेदनाओं से जुड़ा है दिल्ली में 23 साला 

फिजियो के साथ गैंग रैप के बाद उसे तकरीबन मार डालने के बाद  .जिजीविषा उसकी 

वह अभी जीवित है .साक्ष्य है होमोसैपिअन के वहशीपन का .

यही वक्त है चौतरफा कुछ करने का .साधू सन्यासियों का सार्थक हस्तक्षेप भी इस 

मुश्किल समय में ज़रूरी है युवा भीड़ का भी .

आज किसी भी आयु वर्ग की (1 -70 साला )महिला सुरक्षित नहीं है .वह हमारी ही बहु 

बेटी या माँ भी  हो सकती है ,जो कल फिर किसी वहशी का ग्रास बन जाए .

 लेबिल :बलात्कार एक लाइलाज कैंसर   

5 टिप्‍पणियां:

Arvind Mishra ने कहा…

शब्द शब्द से सहमत

पुरुषोत्तम पाण्डेय ने कहा…

सामयिक ज्वलंत प्रश्न पर बहुत अच्छा विवेचन किया है, लेकिन इस तरह की हमारी अपनी सामाजिक सोच के लिए घूम फिर कर श्रीमती सोनिया गांधी को निशाने पर लाना कतई उचित नहीं है. सच तो ये है कि हम सब लोग स्वार्थी, भ्रष्ट, अनैतिक हो रहे हैं, अपवाद जरूर हो सकते हैं पर हमाम में पूरा पानी गंदा है, जिसकी परिणति चारों ओर दुराचार में साफ़ देख रही है.ये समग्र सुध्ह्र कैसे हो? इस पर भी बिना पूर्वाग्रहों के विचार होना चाहिए.

डॉ टी एस दराल ने कहा…

इस तामसी प्रवृति को ख़त्म करने के लिए सख्त कदम उठाने की ज़रुरत है।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

समाज के स्थायित्व के लिये खतरा हैं ये क्षणिक मानसिकता की उन्मादित स्थिति।

Madan Mohan Saxena ने कहा…

सुन्दर