शुक्रवार, 27 जुलाई 2012

कविता :पूडल ही पूडल

कविता :पूडल ही पूडल 
 डॉ .वागीश  मेहता ,१२ १८ ,शब्दालोक ,गुडगाँव -१२२  ००१ 

          जिधर देखिएगा ,है पूडल ही पूडल ,
          इधर भी है पूडल ,उधर भी है पूडल .

(१)नहीं खेल आसाँ  ,बनाया कंप्यूटर ,

यह सी .डी .में देखो ,नहीं कोई कमतर 

फिर चाहे हो देसी ,या परदेसी पूडल 

यह सोनी का पूडल ,वह गूगल का डूडल .

(२)ये मालिक ,ये नौकर  ,बनें सब हैं सेकुलर ,

ये वोटों का चक्कर ,क्यों बनते हो फच्चर .

हो चाहे मंडल या फिर कमंडल ,

है कुर्सी सलामत ,तो बंडल ही बंडल .


(३)यह कैसी है पिक्चर ,सभी लगते जोकर ,

हो क़ानून कैसा ,ये मजहबी चक्कर ,

अभी शेर -सर्कस ,यूं बोलेगा घुर -घुर,

है झूठों  पे लानत ,बनो तुम भी सच्चर .


(४)सभी खिडकियों पे ,ये बैठे हैं बंदर ,

ये धरती भी इनकी ,ये  इनका है अम्बर ,

अपना है डमरू ,है अपना कलंदर ,

ये सब नाचतें हैं ,इशारों से डरकर .

(५) क्या राजा -रानी ,क्या कोई चाकर 

सभी बांटते  हैं ,अपनों में शक्कर ,

है बाकी तो धूलि ,और धूप धक्कड़ ,

यही राजनीति है ,इंडिया की फ्यूडल.


(६)  नहीं कोई ज़ज्बा ,है गैरत है बाकी ,

     खतरनाक चुप्पी ,ये कैसी उदासी ,

     सरकती है जाती ,ये सरकार उनकी ,

     जो फैलाए फ़न से ,लगतें हैं विषधर ,

  (७)ये डी .एन. ए .कैसा ,ये किसका कबूतर ,

      अगर  हाथ गोली तो ,हाथी से न डर 

     जो खाकी का रूतबा ,उसे हाथ में रख 

     फिर बाबा भी खातें हैं ,बच्चों का नूडल .

    प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई ,४३३०९ ,सिल्वरवुड ड्राइव ,कैंटन (मिशगन )
                ४८ १८८ -१७८१ 
                  

12 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

bahut sundar kataksh bahut vistar se bahut khoob varnan मोहपाश को छोड़ सही रास्ता दिखाएँ .

virendra sharma ने कहा…

आलोकित पथ आप करेंगी ,हम तो बस अनुगामी हैं ..शुक्रिया शिखा जी ......कृपया यहाँ भी पधारें -

कविता :पूडल ही पूडल
कविता :पूडल ही पूडल
डॉ .वागीश मेहता ,१२ १८ ,शब्दालोक ,गुडगाँव -१२२ ००१

जिधर देखिएगा ,है पूडल ही पूडल ,
इधर भी है पूडल ,उधर भी है पूडल .

(१)नहीं खेल आसाँ ,बनाया कंप्यूटर ,

यह सी .डी .में देखो ,नहीं कोई कमतर

फिर चाहे हो देसी ,या परदेसी पूडल

यह सोनी का पूडल ,वह गूगल का डूडल .

Arvind Mishra ने कहा…

जोरदार कविता

virendra sharma ने कहा…

दादा (अरविन्द दा )आपके सौजन्य से ही मेहता जी तक इनपुट भेजा था वहां से आई "पूडल ही पूडल "..शुक्रिया .

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

Bahut Hi Badhiya Kavita

शिवनाथ कुमार ने कहा…

नहीं कोई ज़ज्बा ,है गैरत है बाकी ,
खतरनाक चुप्पी ,ये कैसी उदासी ,
सरकती है जाती ,ये सरकार उनकी ,
जो फैलाए फ़न से ,लगतें हैं विषधर ,

बहुत खूब ...
क्या कहने ...

अशोक सलूजा ने कहा…

वाह! भाई जी वाह!
मुबारक हो !

SM ने कहा…

है कुर्सी सलामत ,तो बंडल ही बंडल
beautiful poem

बंडल can be seen as a bundle of notes and it can be seen as bundle of faking promises to citizens by a politician

रचना दीक्षित ने कहा…

पूडल ही पूडल और गूगल का डूडल. वाह प्रभावशाली प्रस्तुति सही कटाक्ष.

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

हास्य-व्यंग्य से सजी अच्छी रचना।

India Darpan ने कहा…

बहुत ही बेहतरीन और प्रभावपूर्ण रचना.....
इंडिया दर्पण की ओर से आपको रक्षाबंधन की अग्रिम शुभकामनाएँ!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

खरी खरी बात कह दी ...